Saturday, May 8, 2010

मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

भारतीय गीतों के राजऋषि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को समर्पित गीत




मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

मेरे अंग अंग को छूकर
क्या करते हो तुम प्राणेश्वर !
नवगति ,नवमति, नवरति भरकर-
क्यों व्याकुल अनुरक्ति तुम्हारी ?
मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

मेरा हृदय निवास तुम्हारा
मेरा सुख विश्वास तुम्हारा
हर स्पंदन हास तुम्हारा
रोम रोम आसक्ति तुम्हारी।
मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

ध्यान तुम्हीं ,अवधान तुम्हीं हो
कर्मों में गतिमान तुम्हीं हो
शुभ,सद,् शिव, शुचि गान तुम्हीं हो
मेरा साहस , शक्ति तुम्हारी।
मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

द्वेष-मुक्त ,निष्कलुष बना दो
मुझे प्रेममय मनुष बना दो
धरती पर ही नहुष बना दो
नहीं चाहिए मुक्ति तुम्हारी।
मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।
28.04.10


नहुष: जब इंद्र शापग्रस्त होकर अपदस्थ हुए तो धरती के नीतिवान प्रतापी राजा नहुष को इंद्र के स्थान पर इंद्रासन पर बैठाया गया था। इंद्र के लौटने पर वे स्वर्ग से पुनः धरती पर लौटाए गए। परन्तु सिद्धों ने उन्हें बीच में ही रोक दिया। वे त्रिशंकु कहलाए। न इधर के रहे न उधर के। घर के न घाट के। बाद में मामला निपट गया।

*फोटो में पंजाब-कोकिला अमृता प्रीतम हैं

13 comments:

  1. द्वेष-मुक्त ,निष्कलुष बना दो
    मुझे प्रेममय मनुष बना दो
    धरती पर ही नहुष बना दो
    नहीं चाहिए मुक्ति तुम्हारी।
    मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।
    Behas sundar rachna!
    Matru diwas mubarak ho..
    "Mere blog" Simte lamhen" pe likha aalekh zaroor padhen..mataon ka ek alag,chaunka denewala, roop maine dekha tha..uske bareme likha hai..

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  2. बहुत सुन्दर मनोरम रचना है ... बधाई !

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  3. क्षमाजी ,
    मातृ-दिवस की स्मृति के लिए आपको अनेकशः धन्यवाद...



    'सिमटे लम्हें' में आकर शेष बातें होंगी

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  4. बहुत सुन्दर गीत .अभिव्यक्ति की गहराई के लिए बधाई.

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  5. ध्यान तुम्हीं ,अवधान तुम्हीं हो
    कर्मों में गतिमान तुम्हीं हो
    शुभ,सद, शिव, शुचि गान तुम्हीं हो
    मेरा साहस , शक्ति तुम्हारी।
    मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।


    रचना अत्यंत प्रभावशील,प्रवाहमान और उत्कृष्ट है
    वाह!! बधाई

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  6. मेरे अंग अंग को छूकर
    क्या करते हो तुम प्राणेश्वर !
    नवगति ,नवमति, नवरति भरकर-
    क्यों व्याकुल अनुरक्ति तुम्हारी ?
    मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

    बहुत सुंदर भाव .......!!

    अमृता जी की ये तस्वीर पहले नहीं देखी थी .....!!

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  7. रोम रोम आसक्ति तुम्हारी
    मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी ....

    शब्दों में भाव गुंथे हैं
    भाव शब्दों से आलिंगनबद्ध हैं
    और ....
    आपकी पावन चेष्ठा
    सफल प्रयोजन में परिवर्तित हो गयी है
    अभिवादन .

    May 16, 2010 5:38 PM

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  8. सभी ब्लागर मित्रों का हृदय से आभार कि यह गीत आपको पसंद आया । वस्तुतः मैं गुरुदेव के गीतों का भावानुवादन ही कर रहा हूं।
    उनके भाव ले रहा हूं और अपनी उनके पथ पर डाल रहा हूं ताकि हिन्दी जगत को वह मिठास मिल सके। स्वयं गुरुदेव ने अपने बांग्ला गीतों का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। मात्र अनुवाद। मैं शिल्प साधने का प्रयास कर रहा हूं।

    उनका अनुवाद प्रस्तुत है भावसाम्य के लिए...
    4. Geetanjali : The songs offerings.

    Life of my life, I shall ever try to keep my body pure, knowing that thy living touch is upon all my limbs.

    I shall ever try to keep sll untruths out from my thoughts, knowing that thou art that truth which has kindled the light of reason in my mind.

    I shall ever try to drive sll evils away from my heart and keep my love in flower,knowing that thou hast thy seat in the inmost shrine of my heart.

    And it shall be my endeavour to reveal thee in my actions, knowing it is thy power gives me strength to act.

    (Translated in english by Robindranath Tagore himself from his original Bongla geet.)

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  9. 'sll' are posted , at two places ; please read them 'all'

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  10. सुंदर गीतों का संकलन दिखता है यहां...अभी और पढना पड़ेगा।

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