Monday, May 24, 2010

मत खेंच लेना ओ अभागों




सच झूठ भरे स्वार्थ से या अहंकार से ,
मत खेंच लेना ओ अभागों हाथ प्यार से ।

जब तुम चलो धरती चले ये आसमां हिले ,
जब तुम हंसों तो पत्थरों पै फूल भी खिले ,
तुम छा गए तो रोशनी सूरज की कम हुई-
ऐसे विचार सोचो तो क्यों तुमको हैं मिले ?
तुम किससे ऊंचा उठ रहे ,तुम किसको ठग रहे ?
देखो नज़र उठा के जरा इस उतार से ।

मंदिर बनाते हो बहुत ऊंचे बहुत विशाल ,
लेकिन किसीके सुख का क्या करते हो कुछ खयाल ,
अपनी बुराइयों से जागना तो बहुत दूर -
तुम तो बना रहे हो बनावट को अपनी ढाल।
अपने हष्दय से पूछो हो किसके विरुद्ध तुम !
क्यों काटते अपना गला अपनी कुठार से ?

जब तक अहं के अस्त्र हैं तब तक कहां का ज्ञान ?
तुम रोज चढ़ाओगे अपनी छूरियांे पै सान ,
ऐसा पढ़ाएगी ये पाठ मद की दलाली -
‘चुन चुन के मान दो ,करो गिन-गिन के सौ अपमान
जो सच कहे निर्भय रहे शुभ सोचता रहे ,
सातों जनम न उबरोगे उसके उधार से ।
211095

पेंटिंग: तरु दत्त

4 comments:

  1. अति उत्तम रचना है ... खास कर ये पंक्तियाँ बहुत सुन्दर है -
    मंदिर बनाते हो बहुत ऊंचे बहुत विशाल ,
    लेकिन किसीके सुख का क्या करते हो कुछ खयाल ,
    अपनी बुराइयों से जागना तो बहुत दूर -
    तुम तो बना रहे हो बनावट को अपनी ढाल।

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  2. जब तक अहं के अस्त्र हैं तब तक कहां का ज्ञान ?
    तुम रोज चढ़ाओगे अपनी छूरियांे पै सान ,
    ऐसा पढ़ाएगी ये पाठ मद की दलाली -
    ‘चुन चुन के मान दो ,करो गिन-गिन के सौ अपमान
    जो सच कहे निर्भय रहे शुभ सोचता रहे ,
    सातों जनम न उबरोगे उसके उधार से ।


    ये पंक्तियाँ बहुत सुन्दर है -

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  3. भट्टाचार्य जी और ज़ाहिद साहब !
    आप के प्रोत्साहन का धन्यवाद!

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  4. तुम किससे ऊंचा उठ रहे ,तुम किसको ठग रहे ? aatammavalokan hi atmonnayan ki kunji

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