Monday, May 7, 2012

गीतांजली के गीतों का छाया रूपांतरण


आज गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगौर की एक सौ पचावीं सालाना जयंती का अंतिम दिवस दोनों देशों की राजधानियों में गर्व से मनाया गया। 
कल से उनकी एक सौ इक्यावनवीं जयती आरंभ होगी।
इस अवसर पर प्रस्तुत है गीतांजली के गीतों का हिन्दी गीतों में छाया रूपांतरण ।
इन गीतों को आपनं पहलं भी भरपूर प्यार दिया। 


अगर संभव हुआ तो इन सबका संकलन आपके हाथों में होगा। 
दुआ करें कि यह संभव हो। 

1. एक झपकी कर गई सब साधनाएँ व्यर्थ,


दिन दहाड़े पास आकर धैर्य न तोलो!
‘शांत, चुप बैठे रहोगे,’- झूठ मत बोलो।।

‘पूजोत्तर परिसाद जो मिल जाए पा लूंगा।’
सादगी सच्ची ही है तो, साथ मत डोलो।।

मलिन वस्त्रों का बनाया स्वाँग सुन्दर है,
ओढ़कर दयनीयता मुख-द्वार ना खोलो।।

सबसे सुन्दर कोना चुनकर जमके बैठे हो,
मेरे घर में अतिथि हो, स्वामित्व ना घोलो।।

साधु के परिधान में सब चोर आते हैं-
कैसे चिन्तामुक्त सो पाऊँ, हो तुम जौ लौं।।

एक खटका भी हो तो लगता है कि तुम हो,
जागते हो क्यों अहिर्निश? पहर भर सो लो।।

एक झपकी कर गई सब साधनाएँ व्यर्थ,
लुट गया सब, तब जगाकर बोले-‘मुंह धो लो।।

21.03.12

2. सागर-मँथन से निकले ना जलजात

जाने कितने युग बीते हैं, हुई नहीं बरसात।
केवल लू, चिर तपन, विकलता, अँधड़, झँझावात।।

सूना है आकाश भयावह, कहीं नहीं बादल,
धूल खेलती हवा करे क्या, अब सावन की बात।।

दूर दूर तक चकाचैंघ की सूरत नहीं चमकती,
काली साँवल नहीं आजकल, पीली पीली रात।।

कोई शंकर सन्नाटे का शायद ताँडव करता,
कहीं नहीं डमरू की गड़गड़, ना पैरों की घात।।

अमृत क्या, विष के प्याले भी अब पीना मुश्किल,
सब निकला सागर-मँथन से, निकले ना जलजात।।

15.02. 12


प्रतिक्रिया अवष्य दें....
संग्रह प्रकाषन की दुआ के साथ


संग्रह प्राप्त करने के लिए पते ई मेल करें...