Wednesday, June 2, 2010

बनकर गीत सुधारस आना




जब नीरस हो जाए जीवन ,
जब मिठास खो दे मेरा मन ,
तुम करुणा-धारा बन जाना
-बनकर गीत सुधारस आना ।।

कर्मों के कोलाहल काले,
मन के मछुआरों ने डाले-
पलपल मछलीवाले जाले,
पर तुम मेरा साथ निभाना
दबे पांव चुपके से आना।।
-बनकर गीत सुधारस आना।।

पड़ा दीन-हीन गुरु गौरव,
निर्बल,निर्जन,निष्क्रिय,नीरव,
मारक है पीड़ा का रौरव,
शब्दों की संजीवनी लाना।
मरता हूं तुम मुझे जिलाना।।
-बनकर गीत सुधारस आना।।


धूल हो गई अतुल कामना,
हुई अपाहिज वीर-वासना,
विफल हो गई स्वार्थ-साधना,
प्रिय! बिखरे स्वर पुनः सजाना।
तार-तार वीणा पर गाना।।
-बनकर गीत सुधारस आना।।
23-24.05.10