Friday, July 16, 2010

जागृत स्वर्ग बने अब भारत।




जागृत स्वर्ग बने अब भारत।

चित्त जहां भयशून्य निरन्तर
आत्मगर्व से उन्नत हों सर
मुक्त ज्ञान हो, सुमति परस्पर
नहीं दीन , न हीन , न आरत।
जागृत स्वर्ग बने अब भारत।

घर-आंगन दीवार रहित हों
शब्द हृदय के सत्त्व सहित हों
सरस सार्थक सतत् सरित हों
बांटें सभी दिशा में अमृत।
जागृत स्वर्ग बने अब भारत।

आचारों से फलित हों उपवन
पौरुष के उत्तम हों साधन
रोपित हर्ष ,करें क्षण प्रतिक्षण
सबके हित में सब हों अभिरत।
जागृत स्वर्ग बने अब भारत।


17.05.10

गीतांजली: 35 : मूल बांगला : रवीन्द्रनाथ टैगोर

चित्त जेथा भयशून्य ,उच्च जेथा शिर ,
ज्ञान जेथा मुक्त जेथा गृहेर प्राचीर
आपन प्रांगणतले दिवसशर्वरी
बसुधारे राखे नाइ खण्ड खण्ड क्षुद्रकरि,
जेथा वाकय हृदयेर उत् समुखहते
उच्छ्वसिया उठे , जेथा निर्वारित स्रोते
दशे देशे दिशे दिशे कर्मधारा धाय
अजस्र सहसबिध चरितार्थताय-

जेथा तुच्छ आचारेर मरुबालुराशि
बिचारेर स्रोतःपथे फेले नाइ ग्रासि,
पौरुषेरे करे नि शतधा-नित्य जेथा
तुमि सर्व कर्म चिन्ता आनंदेर नेता-

निज हस्ते निर्दय आधात करि पितः,
भारतेर सेइ स्वर्गे करो जागरित।

35

Where the mind is without fear
and the head is hels high ;
Where knowlege is free;
Where the world has not been broken up into fragments
by narrow domestic walls;
Where words come out from the depth of truth ;
Where tireless striving streches its arms towards perfection ;
Where the clear stream of reason has not lost its way
into the dreary desert sand of dead habit;
Where the mind is led forward by thee
into ever-widening thought and action---
Into that heaven of freedom ,
my Father ,
let my country awake.
Englidh Translation by Robindranath Taigore.

8 comments:

  1. चित्त जहां भयशून्य निरन्तर
    आत्मगर्व से उन्नत हों सर
    मुक्त ज्ञान हो, सुमति परस्पर
    नहीं दीन , न हीन , न आरत।
    जागृत स्वर्ग बने अब भारत।

    उम्दा प्रस्तुति...

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  2. Hindi bhashantar bahut badhiya hai....jahan English me swair anuwaad hai,Hindi me use geet ka roop prapt hua hai! Bahut khoob!

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  3. बहुत सुन्दर अनुवाद ... सार्थक प्रयास !

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  4. अत्युतम अनुवाद...आपको साधुवाद...
    नीरज

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  5. यह आप एक अत्यन्त स्तुत्य कार्य कर रहे हैं। न केवल अनुवाद उत्तम हो रहा है अपितु काव्यात्मकता भी रस-सिद्ध है, अपने भावों को सहज समेटे हुए।
    शुभेच्छा है कि आप जारी रहें…

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. मानसरोवर-से मन का जल निर्मल होगा
    तन का रोम-रोम रुचिकर, शुचि-शतदल होगा
    मधुकर-गुंजित मानस में मधु प्रतिपल होगा
    अब क्या क्या होगा प्रियवर !
    क्या तुम्हें बताऊं ?
    मानभरी हर हार मानकर
    हार तुम्हें पहनाऊं ।।

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