Wednesday, April 28, 2010

एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।

सन् 2011 कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 150 वीं जन्मशती है। गीतांजली पर उन्हें नोबल पुरस्कार मिला। गीतांजली गीतो की जिन्दगी का शिलालेख है। कबीर के दर्शन और रवीन्द्र की प्रार्थनाओं से सजी गीतांली को तथा कवीन्द्र रवीन्द्र के प्रति प्रणाम निवेदित करते हुए यह गीत-पुष्प अर्पित कर रहा हूं।




एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।


स्थगित सब आज कर दूं काम सारे
भूल जाऊं स्वजन परिजन नाम सारे
तुम हो सम्मुख तो भले हों वाम सारे
आज जी-भर देखने को बावली है आस
एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।

कंटकों के पथ मिले , चलता रहा
भीड़ का एकांत भी छलता रहा
मैं दिया-सा रात भर जलता रहा
टिमटिमाता था अंधेरे में अटल विश्वास
एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।

सागरों की लहर में मैं डूबा उतराया
टूटी नौका से कभी कोई न तट आया
किन्तु अपने आप फागुन कैसे ये छाया
हैं समर्पित गीत सारे तुमको ओ मधुमास !
एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।

28.04.10

13 comments:

  1. कंटकों के पथ मिले , चलता रहा
    भीड़ का एकांत भी छलता रहा
    मैं दिया-सा रात भर जलता रहा
    टिमटिमाता था अंधेरे में अटल विश्वास
    एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।


    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर गीत है ! पढकर ही इतना अच्छा लगा ... कोई इसे तरन्नुम में ढाल दे तो गजब हो जायेगा ... इतना सुन्दर समर्पण और प्रेम भाव ... वाह !

    ReplyDelete
  3. बहुत ही मन भावन ह्रदयस्पर्शी गीत है
    आभार

    ReplyDelete
  4. तुम हो सम्मुख तो भले हों वाम सारे
    आज जी-भर देखने को बावली है आस
    ....
    कंटकों के पथ मिले , चलता रहा
    भीड़ का एकांत भी छलता रहा
    मैं दिया-सा रात भर जलता रहा
    टिमटिमाता था अंधेरे में अटल विश्वास
    प्रशंसनीय प्रस्तुति - आभार

    ReplyDelete
  5. हैं समर्पित गीत सारे तुमको ओ मधुमास !
    एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।

    बहुत ही शानदार . अत्यंत ही प्रसंशनीय .

    www.nareshnashaad.blogspot.com

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर और भावमय गीत है दिल को छूने वाली रचना। बधाई और शुभकामनायें

    ReplyDelete
  7. मेरे लिए तो बस वो ही दिन है हंसी बहार के
    तुम सामने बैठी रहो,मैं गीत गाऊँ प्यार के ''
    कुछ ऐसे ही मनोभाव छलक आये है इस गीत में.
    आये क्यों ना सरे मानव मन,भावनाए समान सी ही तो होती हैं.
    आपने लिखा,पर..........क्या हर नेह-भरा मन ये चाहता ना होगा? उपर लिखी सारी पंक्तियाँ मुझे बहुत अच्छी लगी स्थगित सब आज कर दूं काम सारे
    भूल जाऊं स्वजन परिजन नाम सारे
    तुम हो सम्मुख तो भले हों वाम सारे
    आज जी-भर देखने को बावली है आस
    एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।

    एक बात बताऊँ जब ऐसा जी करे ,तो इन पंक्तियों को जी ही लेना चाहिए.लिखना,पढ़ना,जीना एक क्यों नही कर देते हम?
    ऐसे ही लिखे जाओ और इन कोमल भावों के एक क्षण के लिए भी हाथ से न जाने देना.

    ReplyDelete
  8. हैं समर्पित गीत सारे तुमको ओ मधुमास !
    एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।
    waah

    ReplyDelete
  9. सचमुच बहुत प्यारा गीत है.मन को आहिस्ते से छू गया.बहुत बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  10. स्थगित सब आज कर दूं काम सारे
    भूल जाऊं स्वजन परिजन नाम सारे
    तुम हो सम्मुख तो भले हों वाम सारे
    आज जी-भर देखने को बावली है आस
    एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।

    तसलीम साहब !
    दिल को छूता एक एक शब्द

    ReplyDelete
  11. Sach..is rachname geyta hai..koyi gake sunaye to bada suhana lage!

    ReplyDelete
  12. एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।

    ये एक पंक्ति ही बहुत है मिलन की प्यास को समझने के लिए. जब अथक परिश्रम और इसके बाद बझी किस्मत से यह घड़ी नसीब होती है तो उस मिलन की घड़ी में दिल डूबा हुआ सा रहता है. सिर्फ याद कर कर के जिया नहीं जा सकता. मेरा एक शेर है
    "आ के अब तेरी याद में दिल डूबा जाता है
    हर वक्त तेरे नाम से कहाँ करार आता है "

    ReplyDelete
  13. yhan hindi tankan kyon naheen ho pa raha? apka rachna sansar adbhut hai. bahut badhaee.

    ReplyDelete