Monday, May 24, 2010

मत खेंच लेना ओ अभागों




सच झूठ भरे स्वार्थ से या अहंकार से ,
मत खेंच लेना ओ अभागों हाथ प्यार से ।

जब तुम चलो धरती चले ये आसमां हिले ,
जब तुम हंसों तो पत्थरों पै फूल भी खिले ,
तुम छा गए तो रोशनी सूरज की कम हुई-
ऐसे विचार सोचो तो क्यों तुमको हैं मिले ?
तुम किससे ऊंचा उठ रहे ,तुम किसको ठग रहे ?
देखो नज़र उठा के जरा इस उतार से ।

मंदिर बनाते हो बहुत ऊंचे बहुत विशाल ,
लेकिन किसीके सुख का क्या करते हो कुछ खयाल ,
अपनी बुराइयों से जागना तो बहुत दूर -
तुम तो बना रहे हो बनावट को अपनी ढाल।
अपने हष्दय से पूछो हो किसके विरुद्ध तुम !
क्यों काटते अपना गला अपनी कुठार से ?

जब तक अहं के अस्त्र हैं तब तक कहां का ज्ञान ?
तुम रोज चढ़ाओगे अपनी छूरियांे पै सान ,
ऐसा पढ़ाएगी ये पाठ मद की दलाली -
‘चुन चुन के मान दो ,करो गिन-गिन के सौ अपमान
जो सच कहे निर्भय रहे शुभ सोचता रहे ,
सातों जनम न उबरोगे उसके उधार से ।
211095

पेंटिंग: तरु दत्त

Saturday, May 8, 2010

मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

भारतीय गीतों के राजऋषि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को समर्पित गीत




मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

मेरे अंग अंग को छूकर
क्या करते हो तुम प्राणेश्वर !
नवगति ,नवमति, नवरति भरकर-
क्यों व्याकुल अनुरक्ति तुम्हारी ?
मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

मेरा हृदय निवास तुम्हारा
मेरा सुख विश्वास तुम्हारा
हर स्पंदन हास तुम्हारा
रोम रोम आसक्ति तुम्हारी।
मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

ध्यान तुम्हीं ,अवधान तुम्हीं हो
कर्मों में गतिमान तुम्हीं हो
शुभ,सद,् शिव, शुचि गान तुम्हीं हो
मेरा साहस , शक्ति तुम्हारी।
मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।

द्वेष-मुक्त ,निष्कलुष बना दो
मुझे प्रेममय मनुष बना दो
धरती पर ही नहुष बना दो
नहीं चाहिए मुक्ति तुम्हारी।
मैं केवल अभिव्यक्ति तुम्हारी।
28.04.10


नहुष: जब इंद्र शापग्रस्त होकर अपदस्थ हुए तो धरती के नीतिवान प्रतापी राजा नहुष को इंद्र के स्थान पर इंद्रासन पर बैठाया गया था। इंद्र के लौटने पर वे स्वर्ग से पुनः धरती पर लौटाए गए। परन्तु सिद्धों ने उन्हें बीच में ही रोक दिया। वे त्रिशंकु कहलाए। न इधर के रहे न उधर के। घर के न घाट के। बाद में मामला निपट गया।

*फोटो में पंजाब-कोकिला अमृता प्रीतम हैं