राम तुम्हारे हिस्से आया मेघाकुल आकाश
सिंहासन पर चढ़ते चढ़ते मिला तुम्हें बनवास
दशरथ जैसे वचन क्या करें कैकेयी इच्छाएं
जन-जन की आशाएं आखिर कितनी दूर जाएं
सुमत सुमंतों के रथ केवल सीमा दिखलाएं
बाकी दूरी तुम्हें स्वयं ही पूरी करनी है
कांटेदार पथों पर तुमको बोना है मधुमास
अनजाने अनचाहे पथ पर हंसहंसकर चलना
निर्दय और अमानवीय बाधाओं से लड़ना
उपालंभ दूषित तानों को भस्मीभूत करना
आश्रयहीन यात्राओं के निर्भय आश्रय में
अपने अजित पराक्रम पर ही रखना तुम विश्वास
जीवन गहन उतार चढ़ावों का है क्रीड़ांगन
जंगल होंगे भटकावों के नदियों जलप्लावन
नाविक बनकर तुम्हें ही करना होगा नौकायन
पत्थर और चोट के सारे समीकरण के बीच
राम करो निद्वंद्व द्वंद्व के भय-वन में आवास।
25.4.86
Sunday, November 22, 2009
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